कीमत तेरी बड़ी वहां पर, यहाँ न कोई दे पाए
बड़ा हिसाबी हुआ है तू तो, ये भी हिसाब लगा जाना
बुरी नज़र से तुझे बचाने, लगा दिया था माँ ने जो
काजल के उस टीके की भी, कीमत ज़रा लगा जाना
माली की नज़रों से बचकर, खाए तो चुपके से
चोरी के उन अमरूदों की कीमत ज़रा चुका जाना
माँ के लाख मना करने पर, भी खा ली थी जो छुपके
जाते जाते उस मिटटी की कीमत ज़रा चुका जाना.....
3 comments:
gulzar ke shagird lagte ho!!!
Agar aapke blog se kuch chori kar ke publish karva diya, apne naam ke neeche to fir uski keemat kya lagegi?? :)
Point is, its worth stealing!!Good going...
abbe faadoo likhi hai.
mazza aa gaya.
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