Tuesday, August 23, 2011

मैं इक लफ्ज़ हूँ इक पन्ने पर ,
तुम भी इस लफ्ज़ हो इक पन्ने पर ,
और हम दोनों में कोई भी रिश्ता तो नहीं .

तुम जो हँसते हो तो आवाज़ मुझको आती है ,
कल जो रोये हो तुम शब् भर बिना आवाज़ किये;
नमी से उसकी मेरा मन भी थोडा गीला है .

ये जो पन्नो का पीला पड़ना, स्याही का फीका होना
ये जो तेरा मुझ सा होना, और मेरा तुझ सा होना
ये जो ओह करके जीना और आह करके मरना