Saturday, March 15, 2008

रिश्ता

उसको कुछ दूर तक,
निहारती
आँखों की नमी ने
बताया मुझको।
कि उस चेहरे से, इन आँखों का
रिश्ता क्या है .............

संक्रान्ति

संक्रान्ति : परिवर्तन की बेला,

ज्यों पौ फटी हो।

सुबह- सुबह, गंगा घाट को,

जाती हुई वो;

ठेले पे पति की की लाश को

लादे हुए।

बिखरे बाल, मानो बदहवास ; पर

आंखें सूखी;

आंसुओं को बहने का शायद

वक्त ना मिला।

साथ इक बच्ची भी है

तीन साल की;

समझ नही पाती है बिल्कुल

माँ की पीड़ा।

माँ के मुख को देख कर कुछ

बोलती नही;

पर आंखों मे इक चमक सी है

कुछ पूछती हुई;

आएगी कभी क्या जीवन में,

मेरे भी संक्रान्ति !