रेत का घरौंदा है बिखरने के लिए,
जानकर भी घरौंदा ये क्यों बनाया है
कहीं आँखों के खारे पानी पर
समंदर को तरस भी कभी आया है !
बैठा हूँ दरिया के किनारे लेकिन
जकड के पैरों से दो बालिश्त ज़मीं
हर लहर थोडी रेत छीन जाती है
पैरों तले ज़मीं को खोखला करके
जितनी ज़ोर से ज़मीं को पकड़ना चाहा
उतनी ही हुई खोखली बुनियाद मेरी
2 comments:
another awesoem piece by gopal mishra.
theme is nice and so is wordings.
well,i have also heard of sand sculpture.......wonder how waves dont take them away.
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