हाथों पे ये किस्मत हैं, सरहद पे हैं जंजीरें
बन जाती हैं कलम से, मिटती नहीं लकीरें
मुद्दई बने हैं भाई, बरसों के तोड़ रिश्ते
क्या क्या हैं इसके जलवे, जादू की ये लकीरें
अपने ही घर मे कैद हम, साँसों को तरसते हैं
अपनों से ये चेहरे हैं, मगर बीच में लकीरें
ऐ क़यामत गिरा दे घर की, इस चारदीवारी को
राहत मिले घुटन से, दब जायें ये लकीरें
मिटटी की ये लकीरें, पत्थर न हमको कर दें
बारिश करा दे मौला धुल जायें ये लकीरें