कल शाम रस्ते पे देखा, कुछ मैला सा कनवास;
रेशा - रेशा, ज्यों लम्हा- लम्हा, बुना हुआ करीने से।
रंगों के बीच की दरारें, भेद सारी सिल्वटों के।
दिल की कश्मकश उभर आयी है इन सिल्वटों में।
फेंका होगा आवेश में, उन्ही हाथों ने
जिनमे थमी कूची ने भरा था रंगों से इसे।
.... कुछ सुर्ख, ... तो कुछ स्याह.......
कोरों पे लगी कालिख़,
कुछ सालती है क्योंकर
दिन रात ये जपते हो
तमसो मा ज्योतिर्गमय
तमसो मा ज्योतिर्गमय
Monday, November 06, 2006
Saturday, November 04, 2006
dhoop ayegi
सर्दी की एक सुबह
वीरान सूनी सड़कें
फुटपाथ पर ठंड से सिहरती
इक निर्बल सी काया
अख़बार के टुकडों को
लपेट कर
ठंड से बचने की
नाकाम कोशिश कर रही
खुद को दिलासा देती है।
सूर्योदय के इंतज़ार में
आसमान पर टिकी निगाहें
इक पल को चली जाती
गगनचुम्बी अट्टालिकाओं पर
महलों कि खिड़कियाँ
हमारे लिए बंद सही
पर सूर्य !!!
उसकी रौशनी तो
मेरे लिए भी है
मेरे लिए भी......
इसी इंतजार में पथराई निगाहें
एकटक देखतीं आसमां को
कभी तो सूर्य उगेगा
सवेरा होगा
धूप आएगी
धूप आयेगी..............
वीरान सूनी सड़कें
फुटपाथ पर ठंड से सिहरती
इक निर्बल सी काया
अख़बार के टुकडों को
लपेट कर
ठंड से बचने की
नाकाम कोशिश कर रही
खुद को दिलासा देती है।
सूर्योदय के इंतज़ार में
आसमान पर टिकी निगाहें
इक पल को चली जाती
गगनचुम्बी अट्टालिकाओं पर
महलों कि खिड़कियाँ
हमारे लिए बंद सही
पर सूर्य !!!
उसकी रौशनी तो
मेरे लिए भी है
मेरे लिए भी......
इसी इंतजार में पथराई निगाहें
एकटक देखतीं आसमां को
कभी तो सूर्य उगेगा
सवेरा होगा
धूप आएगी
धूप आयेगी..............
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